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Wednesday, 28 August 2019




As per the demand of our visitors we have collected some facts about Maharana Pratap from various websites. These details may or may not be correct but because some of our visitors desperately wanted these facts so, we have collected it for them. So, below are some facts about Maharana Pratap.


Maharana Pratap's Height  :   7ft 5 inches 
Weight of Maharana Pratap's Bhala(  Javelin/Spear )  :   80 Kg 
Weight of Maharana Pratap’s Armor  :    72 Kg 
Weight of Maharana Pratap’s Shoes  :   5 kg shoe each 
Weight of his two swords  :   25 kg each 

नाम - कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
जन्म - 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान
पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता - राणी जीवत कँवर जी
राज्य - मेवाड़
शासन काल - 1568-1597ई.
शासन अवधि - 29 वर्ष
वंश - सुर्यवंश
राजवंश - सिसोदिया
राजघराना - राजपूताना
धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी - उदयपुर
पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह

अन्य जानकारी -
महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,जिसका नाम 'चेतक' था।

राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर,मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे।

वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि राणा प्रताप का जन्म हुआ।

महाराणा का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है।

महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-

1. महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।

2. जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए| तब माँ का जवाब मिला- "उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना " लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | "बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए 'किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं |

3. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था| कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।

4. आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |

5. अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी| लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |

6. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |

7. महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |

8. महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं| इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |

9. हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |

10. .महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |

11. महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |

12. मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे| आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील |

13. महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |

14. राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|

15. मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |

16. महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7'5" थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।

महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी:

मित्रो आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।

रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।

वो लिखता है की जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।

आगे अल बदायुनी लिखता है की वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था

वो आगे लिखता है कि उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर 14 महावतो को बिठाया तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।

अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति। उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही पानी पिया और वो शहीद हो गया।

तब अकबर ने कहा था कि जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा। ऐसे ऐसे देशभक्त चेतक व रामप्रसाद जैसे तो यहाँ जानवर थे।

* महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोडा समेत दुश्मन
सैनिको को काट डालते थे



Reference – Bahalol Khan challenged Maharana Pratap 

*जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे भी आ रहे थे तब उन होने उनकी माँ से पूछाकी हिंदुस्तान से क्यों लेकर आपके लिए। …तब माँ का जवाब मिला “उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्टी धूल जहा का राजा अपने प्रजा के पति इतना वफ़ा दार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले आपनी मातृभूमि को चुना ” ….बड किस्मत से उनका वो दौरा रदद्ध हो गया था। “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में ये बात आप पढ़ सकते है। ..



Maharana Pratap Painting
*महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और
कवच का वजन 80 किलो था और कवच
भाला,कवच,ढाल,और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो

reference – http://rajputanas.com/rajput-history/facts-about-maharana-pratap/

*आज भी महा राणा प्रताप कि तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रालय में सुरक्षित है

*अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आदा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहट अकबर कि रहेगी

*हल्दी घाटीकी लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिलथे और अकबर कि और से 85000 सैनिक


Maharana Pratap Battle of Haldighati

*राणाप्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घटी में सुरक्षित है

*महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को



Maharana Pratap Painting
Maharana Pratap  life in haldighati
*हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वह जमीनो में तलवारे पायी गयी। … आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 हल्दी घाटी के में मिला

*महाराणा प्रताप अस्त्र शत्र कि शिक्सा जैमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। …. उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे

*राणा प्रताप के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था



Statue of Maha Rana Pratap udaipur

*राणा का घोडा चेतक भी बहुत ताकत वर था उसके मुह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी



Maharana Pratap and Chetak
*मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर कि फोज को आपने तीरो से रोंद डाला था वो राणाप्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राज चिन्ह पैर एक तरह राजपूत है तो दूसरी तरह भील

*राणा का घोडा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिआ पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ।उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वो दरिआ पर कर गया। जहा वो घायल हुआ वहाआज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहा मारा वह मंदिर । हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे

*मरने से पहले महाराणा ने खोया हुआ 85 % मेवार फिर से जीत लिया था



Bravery of Maharana Pratap
*सोने चांदी और महलो को छोड़ वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमने

*महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो… और लम्बाई – 7’5” थी…..
दो मियां वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में.

*मेवाड़ राजघराने के वारिस को एक लिंग जी भगवन का दीवान माता जाता है।

*छत्रपति शिवाजी भी मूल रूप से मेवाड़ से तलूक रखते थे वीर शिवा जी के पर दादा उदैपुर महा राणा के छोटे भाई थे

*अकबर को अफगान के शेख रहमुर खान ने कहा था अगर तुम राणा प्रताप और जयमल मेड़तिया को मिला दो अपने साथ तोह तुम्हे विश्व विजेता बन्ने से कोई नहीं रोक सकता पर इन दो वीरो ने जीते जी कबि हार नहीं मानी।

*नेपाल का राज परिवार भी चित्तोर से निकला है दोनों में भाई और खून का रिश्ता है

*मेवाड़ राजघराना आज भी दुनियाका सबसे प्राचीन राजघराना है उस के बाद जापान का है

*rana pratap ke purvaj Rana Sanga ne akabar k dada babar se khanwa me yudh lada tha or rana pratap ne akabar se or rana k bete amar singh ne janghir ko sandhi k liye majboor kiya tha or aapne 15 saalo k raaj me pura Mewar apne kabje me le liye tha

*haldighati se 40 KM dur ranakpur k jungel me aaj bhi rana pratap k senapati rana jhala ki chatri bani huyi hai jaha unhe veer gati prapt huyi hai



Painting of Maharana Pratap
Maharana Pratap  in jungle
*rana prtap k saath afgan k teer chalane wale 2000 pathan bhi the jo ladai shuru hone k 2 ghante baad maidan chod gaye the

*mewar ki or se rana pratap ki ek tukdi ki leadership ek saache musalman ne ki thi usko or uske pariwar ko maharana ne muglo se bachaya tha or mewer me panah di thi

*maharana pratap k bete amar singh ne akabar or muglo ki begumo ko malwa k pass se ek jung jeetne k baad kaid kr laye the …iska pata chalte rana ne un auroto ko samman sahit bhijwaya or 3 din vishit ahiti bana kar rakha is per amar singh ko kaafi samjhaya tha

*maharana prtap k saat mewar malwa or godwar k 100 se jayda thakur saat the

* ek waqt aisa bhi aaya tha jab rana pratap k bete amar chote the or jab wo gass ki roti kha rahe the tab ek billa amar singh k haat se wo gass ki roti le bhaga tha iss per geet bhi jo aaj bhi gaya jata hai “hare gass ki roti jad van bilado le bhagyo”

*aadwasi bheel samaj k log rana k maut k baad bhi unhe ghar ghar pujte rahe in kabilo ka sardar hamesha mewar k ranao ka saath deta aaya hai

*haldi ghati me itna khoon baha tha ki waha k nadiyo or jharno ka pani bhi laal ho gaya tha

or aant me sabi ko shukariya yaha tak padhne k liye
wo rana humare liye lada tha sirf or sirf apne desh k liye na rajput k liye na jat k liye na gurjar k liye na brahman k liye or na hi aapne Raj Sinhasan k liye…..

Jai Maharana….
mar kar bhi jo amar ho gaya wo rana wo maha rana


We Gives Big Thanks For The "rajputanas.com" For Giving Amazing Information Of Maharana Pratap Sing Sisodiya.
- See more at: http://rajputanas.com/

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References: 

http://rajputanas.com/rajput-history/facts-about-maharana-pratap/

http://travel.sulekha.com/maharana-pratap-of-mevar_travelogue_559149

http://www.ariseindiaforum.org/glories-of-maharana-pratap-singh/#sthash.3e0r3Byb.dpuf

http://www.ariseindiaforum.org/glories-of-maharana-pratap-singh/

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Thursday, 7 March 2019


Most people are familiar with the story of Atlantis, the legendary sunken city as described by the ancient Greek philosopher Plato. Till this day, opinion is still divided as to whether this story should be understood literally or taken merely as a morality tale. Further east in the subcontinent of India is a similar tale, though it probably is less well known compared to that of Atlantis. This is the ‘lost continent’ of Lemuria, frequently connected to the legend of Kumari Kandam by speakers of the Tamil language.

The term Lemuria has its origins in the latter part of the 19 th century. The English geologist Philip Sclater was puzzled by the presence of lemur fossils in Madagascar and India but not in mainland Africa and the Middle East. Thus, in his 1864 article entitled ‘The Mammals of Madagascar’, Sclater proposed that Madagascar and India were once part of a larger continent, and named this missing landmass ‘Lemuria’. Sclater’s theory was accepted by the scientific community of that period as the explanation of the way lemurs could have migrated from Madagascar to India or vice versa in ancient times. With the emergence of the modern concepts of continental drift and plate tectonics, however, Sclater’s proposition of a submerged continent was no longer tenable. Yet, the idea of a lost continent refused to die, and some still believe that Lemuria was an actual continent that existed in the past.



One such group is the Tamil nationalists. The term Kumari Kandam first appeared in the 15 th century Kanda Puranam, the Tamil version of the Skanda Puranam. Yet, stories about an ancient land submerged by the Indian Ocean have been recorded in many earlier Tamil literary works. According to the stories, there was a portion of land that was once ruled by the Pandiyan kings and was swallowed by the sea. When narratives about Lemuria arrived in colonial India, the country was going through a period when folklore was beginning to permeate historic knowledge as facts. As a result, Lemuria was quickly equated with Kumari Kandam.

The story of Kumari Kandam is not regarded as just a story, but seems to be laden with nationalistic sentiments. It has been claimed that the Pandiyan kings of Kumari Kandam were the rulers of the whole Indian continent, and that Tamil civilisation is the oldest civilisation in the world. When Kumari Kandam was submerged, its people spread across the world and founded various civilisations, hence the claim that the lost continent was also the cradle of human civilisation.


So, how much truth is there in the story of Kumari Kandam? According to researchers at India’s National Institute of Oceanography, the sea level was lower by 100 m about 14,500 years ago and by 60 m about 10,000 years ago. Hence, it is entirely possible that there was once a land bridge connecting the island of Sri Lanka to mainland India. As the rate of global warming increased between 12,000 and 10,000 years ago, the rising sea levels resulted in periodic flooding. This would have submerged prehistoric settlements that were located around the low-lying coastal areas of India and Sri Lanka. Stories of these catastrophic events may have been transmitted orally from one generation to another and finally written down as the story of Kumari Kandam.

One piece of evidence used to support the existence of Kumari Kandam is Adam’s Bridge (also called Rama’s Bridge), a chain of limestone shoals made up of sand, silt and small pebbles located in the Palk Strait extending 18 miles from mainland India to Sri Lanka.  This strip of land was once believed to be a natural formation, however, others argue that images taken by a NASA satellite depict this land formation to be a long broken bridge under the ocean's surface.

The existence of a bridge in this location is also supported by another ancient legend.  The Ramayana tells the tale of Sita, Rama’s wife, being held captive on the island of Lanka. Rama commissions a massive building project to construct a bridge to transport his army of Vanara (ape men) across the ocean to Lanka.

As with most so-called myths, it seems likely that there is at least some truth to the ancient Tamil legends of Kumari Kandam, but just how much, is yet to be determined.

“Lot of research were conducted by many european researchers”

  1. Few researchers State this was the place where the first Human came to birth.
  2. 30,000 years BC Pandians Ruled this region.
  3. It consisted of 49 Countries.
  4. Kumari Kandam had high resourceful Rivers named, Paleru and Kumari.
  5. Two Mountain regions named Kumari and Mani Mountains.
  6. The Largest economically developed Cities were Then Madurai and Kabalapuram.
  7. Pandiyans Ruled this entire region.
8. The First Three Tamil Sangam took place in this region.
9. Most of the Top Tamil Liturature were written in this region like “Purananooru, Kalarivezhi Agathiyam, Thollkapiyam, Agananooru, Naaladiyarr, Thirukural etc.. “
10. Because of a big Flood or Global warming during its Golden Period the Continent sunk.
There was many debates to prove it, Some stated this a fake hoax but few managed to prove :
this following content was taken from jaiRajkumar ( இரா இராச குமார்),’s answer on Kumari kandam’s Myth :
The Lemuria proved by the research team by Lewis Ashwal(geologist).
The lost continent (Lemuria-kumari kandam of Tamil world) which is the world's oldest place ever.

WE URGE OUR GOVT SHOULD SUPPORT THIS PROJECT TO EXCAVATE LEMURIA
EVEN mr.ORSSIA BALU did many studies regard that existence of kumari kandam under the India ocean region on tip of the Tamil Nadu coast
Researched on the Kalinga-Tamil relationship was the beginning which became his passion for research into the Tamil history.
His present research area is ‘Culture through Geography.Going beyond the emotional approach to the existence of Lemuria, Balasubramani , in addition to the study of literary references, conducts experiments on the Tamil coast making use of the traditional knowledge of the coastal community.
He claims, which is important, that the traditional sailors and fishermen have a lot to contribute towards our knowledge of navigation , tsunamis and how transgression and regression in the Tamil Nadu coast had affected history, society and livelihoods.
WE HAVE MANY LITERATURE EVIDENCE ABOUT kumari kandam
Tamil’s forefather Tevaneyap pavanar was spreading truth about existence of kumari kandam history.
In his view the Tamil language originated in "Lemuria" (இலெமூரியா Ilemūriyā), the cradle of civilisation and place of origin of language. He believed that evidence of Tamil's antiquity was being suppressed by Sanskritists.



Tevaneyap Pavanar's timeline for the evolution of mankind and Tamil is as follows:

  • ca. 500,000 BC: origin of the human race,
  • ca. 200,000 to 50,000 BC: evolution of "the Tamilian or Homo Dravida[4]",
  • c. 200,000 to 100,000 BC, beginnings of Tamil
  • c. 100,000 to 50,000 BC, growth and development of Tamil,
  • 50,000 BC: Kumari Kandam civilisation
  • 20,000 BC: A lost Tamil culture on Easter Island which had an advanced civilisation
  • 16,000 BC: Lemuria submerged
  • 6087 BC: Second Tamil Sangam established by a Pandya king
  • 3031 BC: A Chera prince wandering in the Solomon Islands saw wild sugarcane and started cultivation in Tamil Nadu.
  • 1780 BC: The Third Tamil Sangam established by a Pandya king
  • 7th century BC: Tolkappiyam, the earliest extant Tamil grammar

In the 19th century, a section of the European and American scholars speculated the existence of a submerged continent called Lemuria, to explain geological and other similarities between AfricaAustraliaIndia and Madagascar.
A section of Tamil revivalists adapted this theory, connecting it to the Pandyan Kingdom of lands lost to the ocean, as described in ancient Tamiland Sanskrit literature. Here is an instance of sanskrit literature about kumari kandam recorded in English:

According to these writers, an ancient Tamil civilization existed on Lemuria, before it was lost to the sea in a catastrophe. In the 20th century, the Tamil writers started using the name "Kumari Kandam" to describe this submerged continent.
The Lemuria theory remained popular among the Tamil revivalists of the 20th century. According to them, Kumari Kandam was the place where the first two Tamil literary academies (sangams) were organized during the Pandyan reign. They claimed Kumari Kandam as the cradle of civilization to prove the antiquity of [Tamil language] and culture.

Multiple ancient and medieval Tamil and Sanskrit works contain legendary accounts of lands in South India being lost to the ocean.The earliest explicit discussion of a katalkol("seizure by ocean", possibly tsunami) of Pandyan land is found in a commentary on Iraiyanar Akapporul. This commentary, attributed to Nakkeerar, is dated to the later centuries of the 1st millennium CE. It mentions that the Pandyan kings, an early Tamil dynasty, established three literary academies (Sangams): the first Sangam flourished for 4,400 years in a city called Tenmaturai (South Madurai) attended by 549 poets (including Agastya) and presided over by gods like Shiva, Kubera and Murugan. The second Sangam lasted for 3,700 years in a city called Kapatapuram, attended by 59 poets (including Agastya, again). The commentary states that both the cities were "seized by the ocean", resulting in loss of all the works created during the first two Sangams. The third Sangam was established in Uttara(North) Madurai, where it is said to have lasted for a decade of years.
Nakkeerar's commentary does not mention the size of the territory lost to the sea. The size is first mentioned in a 15th-century commentary on Silappatikaram. The commentator Adiyarkunallar mentions that the lost land extended from Pahruli river in the north to the Kumari river in the South.
You can also watch Kandam (2016), a Tamil Canadian/Sri Lankan film directed by Pras Lingam. The film is based on the premise of the existence of the continent of Kumari Kandam and the prevalence of Tamil civilization in antediluvian times.
Kumari Kandam appeared in The Secret Saturdays episodes "The King of Kumari Kandam" and "The Atlas Pin". This version is a city on the back of a giant sea serpent with its inhabitants all fish people.
Kumari Kandam appeared on Season Two, Episode Three of the History Channel television show Ancient Aliens.

Changes in southern India

It is possible to demarcate the land lost to the sea in the south of India from postglacial inundation maps that indicate the significant changes in the coastline.

The author has prepared inundation maps on the basis of bathymetric contours and the sea-level curve for the central west coast to work out the configuration of the coastline south of India since the last Ice Age. This study shows that about 14,500 years ago the sea level was lower by approximately 100 m than the present sea level. The land between the present coast and the bathymetric contour of 100 m roughly was the land that was exposed during that time.

In other words, hypothetically, if a 100 m column of sea water were to be removed, the land that went under water would be exposed. At that time the present Gulf of Mannar was a landmass of 36,000 sq. km connecting Sri Lanka with peninsular India and the coast was wider by about 80 km to the east, south and west of present-day Cape Comorin exposing a triangular mass of 6,500 sq. km adjoining the Cape. The coastline was 25-35 km wider than the present near Cuddalore and about 25 km wider near Colombo.

Global warming

The increased rate of global warming between 12,000 and 10,000 years ago saw the sea level rise almost 50 m, inundating low-lying lands and covering a major part of the exposed continental shelf. About 10,000 years ago, the sea level was about 50 m lower than the present sea level. At that time, the land extended about 25 km south of the Cape and the coast was about 40 km broader than the present coastline along the east and the west, which exposed about 1,000 sq km of land near Cape Comorin. Rameswaram and Mannar were joined by land and the land that extended in the present-day Gulf of Mannar was a 2,500-sq km stretch marked by sedimentary formations and coral reefs.



AN INUNDATION MAP by S.C. Jayakaran. He prepared the map on the basis of bathymetric contours and the sea-level curve for the central west coast to work out the configuration of the coastline south of India since the last Ice Age. It shows that about 14,500 years ago the sea level was lower by about 100 m than the present. The land between the coast now and the bathymetric contour of 100 m was the land that was exposed then.
As the research of Rajiv Nigam indicated, sea levels continued to rise and reached the present level around 6,000 years ago. This is about the time Sri Lanka evolved as an island. Between 4,000 and 3,500 years ago, heavy rains, in addition to melting of snow, also contributed to the sea level rise. It rose by a couple of metres and fell to the present level about 2,000 years ago.

It is scientifically uncontested that the earliest Homo sapiens developed in Africa 100,000 to 200,000 years ago and migrated to Europe and Asia. Genetic evidence and fossil records of early human beings indicate that they came out of Africa as early as 100,000 to 60,000 years ago. Their descendants migrated to the Far East, probably along the coastal areas adjacent to the Arabian Sea and the Bay of Bengal around the Indian peninsula, Sri Lanka and then north into China and south into Sumatra.

As the sea levels rose, resulting in periodic flooding and deluges, prehistoric settlements that were located in the low-lying coastal lands and the exposed continental shelf were inundated. The people who lived in the coastal area of the Indian peninsula and Sri Lanka and who escaped the deluges perpetuated the oral tradition of a lost land. It is my considered opinion that it is this development that gave rise to the legend of Kumari kandam.

References

Jayakaran, S. C., 2011`. The Lemuria Myth. [Online]
Available at: http://www.frontline.in/navigation/?type=static&page=archiveSearch&aid=20110422280809000&ais=08&avol=28

Mahalingam, N., 2010. Lemuria and Kumari Kandam. [Online]
Available at: http://www.thehindu.com/news/national/tamil-nadu/lemuria-and-kumari-kandam/article482101.ece

Parameswaran, N., 2005. Tamil civilisation - is it the oldest?. [Online]
Available at: http://www.tamilguardian.com/article.asp?articleid=256

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https://frontline.thehindu.com/static/html/fl2808/stories/20110422280809000.htm

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Thursday, 8 March 2018

Title: Devanam Priyadarshi
Birth: 304 B.C. 
Birthplace: Pataliputra (modern day Patna)
Dynasty: Maurya
Parents: Bindusara and Devi Dharma
Reign: 268 –232 B.C.
Symbol: Lion
Religion: Buddhism
Spouse: Asandhimitra, Devi, Karuvaki, Padmavati, Tishyaraksha
Children: Mahendra, Sanghamitra, Tivala, Kunala, Charumati
Ashoka was the third ruler of the illustrious Maurya dynasty and was one of the most powerful kings of the Indian subcontinent in ancient times. His reign between 273 BC and 232 B.C. was one of the most prosperous periods in the history of India. Ashoka’s empire consisted most of India, South Asia and beyond, stretching from present day Afghanistan and parts of Persia in the west, to Bengal and Assam in the east, and Mysore in the south. Buddhist literature document Ashoka as a cruel and ruthless monarch who underwent a change of heart after experiencing a particularly gruesome war, the Battle of Kalinga. After the war, he embraced Buddhism and dedicated his life towards dissemination of the tenets of the religion. He became a benevolent king, driving his administration to make a just and bountiful environment for his subjects. Owing to his benevolent nature as a ruler, he was given the title ‘Devanampriya Priyadarshi’. Ashoka and his glorious rule is associated with one of the most prosperous time in the history of India and as a tribute to his non-partisan philosophies, the Dharma Chakra adorning the Ashok stambh has been made a part of the Indian National Flag. The emblem of the Republic of India has been adapted from the Lion Capital of Ashoka.
Early Life
Ashoka was born to Mauryan King Bindusara and his queen Devi Dharma in 304 B.C. He was the grandson of the great Chandragupta Maurya, the founder emperor of the Maurya Dynasty. Dharma (alternatively known as Subhadrangi or Janapadkalyani) was the daughter of a Brahmin priest from the kindom of Champa, and was assigned relatively low position in the royal household owing to politics therein. By virtue of his mother’s position, Ashoka also received a low position among the princes. He had only one younger sibling, Vithashoka, but, several elder half-brothers. Right from his childhood days Ashoka showed great promise in the field of weaponry skills as well as academics. Ashoka’s father Bindusara, impressed with his skill and knowledge, appointed him as the Governer of Avanti. Here he met and married Devi, the daughter of a tradesman from Vidisha. Ashoka and Devi had two children, son Mahendra and daughter Sanghamitra. 
Asoka quickly grew into an excellent warrior general and an astute statesman. His command on the Mauryan army started growing day by day. Ashoka’s elder brothers became jealous of him and they assumed him being favoured by King Bindusara as his successor to the throne. King Bindusara’s eldest son Sushima convinced his father to send Ashoka far away from the capital city of Pataliputra to Takshashila province. The excuse given was to subdue a revolt by the citizens of Takshashila. However, the moment Ashoka reached the province, the militias welcomed him with open arms and the uprising came to an end without any fight. This particular success of Asoka made his elder brothers, especially Susima, more insecure.
Accession to the Throne
Susima started inciting Bindusara against Ashoka, who was then sent into exile by the emperor. Ashoka went to Kalinga, where he met a fisherwoman named Kaurwaki. He fell in love with her and later, made Kaurwaki his second or third wife. Soon, the province of Ujjain started witnessing a violent uprising. Emperor Bindusara called back Ashoka from exile and sent him to Ujjain. The prince was injured in the ensuing battle and was treated by Buddhist monks and nuns. It was in Ujjain that Asoka first came to know about the life and teachings of Buddha.
In the following year, Bindusura became seriously ill and was literally on his deathbed. Sushima was nominated successor by the king but his autocratic nature made him unfavourable among the ministers. A group of ministers, led by Radhagupta, called upon Ashoka to assume the crown. Following Bindusara’s death in 272 B.C., Ashoka attacked Pataliputra, defeated and killed all his brothers, including Sushima. Among all his brothers he only spared his younger brother Vithashoka. His coronation took place four years after his ascent to throne. Buddhist literatures describe Ashoka as a cruel, ruthless and bad-tempered ruler. He was named ‘Chanda’ Ashoka meaning Ashoka the Terrible, due to his disposition at that time. He was attributed with building Ashoka’s Hell, a torture chamber manned by an executioner to punish offenders. 
After he became the empperor, Ashoka launched brutal assaults to expand his empire, which lasted for around eight years. Although the Maurya Empire that he inherited was quite sizable, he expanded the borders exponentially. His kingdom stretched from Iran-Afghanistan borders in the West to Burma in the east. He annexed the whole of Southern India except Ceylon (modern day Sri Lanka). The only kingdom outside his grasp was Kalinga which is the modern day Orissa.

The Battle of Kalinga and Submission to Buddhism
Ashoka launched an assault to conquer Kalinga during 265 B.C. and the battle of Kalinga became a turning point in his life. Ashoka personally led the conquest and secured victory. On his orders, the whole of province was plundered, cities were destroyed and thousands of people were killed. 
The morning after the victory he went out to survey the states of things and encountered nothing except burnt houses and scattered corpses. Having brought face to face with the consequences of war, for the first time he felt overwhelmed with the brutality of his actions. He saw flashes of the destruction that his conquest had wrought even after returning to Pataliputra. He experienced an utter crisis of faith during this period and sought penance for his past deeds. He vowed never to practice violence again and devoted himself completely to Buddhism. He followed the directives of Brahmin Buddhist gurus Radhaswami and Manjushri and started propagating Buddhist principles throughout his kingdom. Thus Chandashoka morphed into Dharmashoka or the pious Ashoka.
Administration of Ashoka
The administration of Ashoka after his spiritual transformation was focused solely on the well-being of his subjects. The emperor was at the helm of the administration following the established model put forward by Mauryan Kings before Ashoka. He was closely assisted in his administrative duties by his younger brother, Vithashoka and a group of trusted ministers, whom Ashoka consulted before adopting any new administrative policy. The most important members of this advisory council included the Yuvaraj (Crown Prince), the Mahamantri (Prime Minister), the Senapati (general), and the Purohita (priest). Asoka’s reign saw introduction of a large number of benevolent policies as compared to his predecessors. He adopted a paternalistic view on administration and proclaimed "All men are my Children", as evident from the Kalinga edict. He also expressed his indebtedness to his subjects for bestowing with their love and respect, and that he considered it his duty to serve for their greater good. 
His kingdom was divided into Pradesha or provinces which were subdivided into Vishyas or subdivisions and Janapadas, which were further subdivided into villages.The five chief provinces under Ashoka’s reign were the Uttarapatha(Northern Province) with its capital at Taxila; Avantiratha (western province) with its headquarters at Ujjain; Prachyapatha (eastern province) with its centre at Toshali and the Dakshinapatha (southern province) with its capital as Suvarnagiri. The central province, Magadha with its capital at Pataliputra was the administrative centre of the empire.  Each province was granted partial autonomy at the hand of a crown prince who was responsible for controlling the overall law enforcement, but the emperor himself retained much of the financial and administrative controls. These provincial heads were altered from time to time to prevent any one of them exerting power over a long period of time. He appointed several Pativedakas or reporters, who would report to him the general and public affairs, leading the king to take necessary steps.
Although Ashoka built his empire on the principles of non-violence, he followed the instructions outlined in the Arthashastra for the characters of the Perfect King. He introduced legal reforms like Danda Samahara and Vyavahara Samahara, clearly pointing out to his subjects the way of life that is to be led by them. The overall judicial and administration were overseen by Amatyas or civil servants whose functions were clearly delineated by the Emperor. The Akshapataladhyaksha was in charge of currency and accounts of the entire administration. The Akaradhyaksha was in-charge of mining and other metallurgical endeavours. The Sulkadhyaksa was in charge of collecting the taxes. The Panyadhyaksha was controller of commerce. The Sitadhyaksha was in charge of agriculture. The emperor employed a network of spies who offered him tactical advantages in diplomatic matters. The administration conducted regular census along with other information as caste and occupation.
Religious Policy: Ashoka’s Dhamma
Ashoka made Buddhism the state religion around 260 B.C. He was perhaps the first emperor in history of India who tried to establish a Buddhist polity by implementing the Dasa Raja Dharma or the ten precepts outlined by Lord Buddha himself as the duty of a perfect ruler. They are enumerated as:
1.To be liberal and avoid selfishness
2. To maintain a high moral character
3. To be prepared to sacrifice one's own pleasure for the well-being of the subjects
4. To be honest and maintain absolute integrity
5. To be kind and gentle
6. To lead a simple life for the subjects to emulate
7.  To be free from hatred of any kind
8. To exercise non-violence
9.  To practice patience
10. To respect public opinion to promote peace and harmony


Ashoka’s Edicts:
1. No living being were to be slaughtered or sacrificed.
2. Medical care for human as well as animals throughout his Empire
3. Monks to tour the empire every five years teaching the principles of dharma to the common people.
4. One should always respect one’s parents, priests and monks
5. Prisoners to be treated humanely
6. He encouraged his subjects to report to him their concerns regarding the welfare of the administration at all times no matter where he is or what he is doing.
7. He welcomed all religions as they desire self-control and purity of heart.
8. He encouraged his subjects to give to monks, Brahmans and to the needy.
9. Reverence for the dharma and a proper attitude towards teachers was considered better than marriage or other worldly celebrations, by the Emperor.
10. Emperor surmised that glory and fame count for nothing if people do not respect the dharma.
11. He considered giving the dharma to others is the best gift anyone can have.
12. Whoever praises his own religion, due to excessive devotion, and condemns others with the thought "Let me glorify my own religion," only harms his own religion. Therefore contact (between religions) is good.
13. Ashoka preached that conquest by the dhamma is superior to conquest by force but if conquest by force is carried out, it should be 'forbearance and light punishment'.
14. The 14 edicts were written so that people might act in accordance with them.
He got these 14 edicts engraved in stone pillars and slabs and had them placed at strategic places around his kingdom.
Role in Dissemination of Buddhism
Throughout his life, 'Asoka the Great' followed the policy of non-violence or ahimsa. Even the slaughter or mutilation of animals was abolished in his kingdom. He promoted the concept of vegetarianism. The caste system ceased to exist in his eyes and he treated all his subjects as equals. At the same time, each and every person was given the rights to freedom, tolerance, and equality. 
The third council of Buddhism was held under the patronage of Emperor Ashoka. He also supported the Vibhajjavada sub-school of the Sthaviravada sect, now known as the Pali Theravada. 
He sent missionaries to far of places to propagate the ideals of Buddhism and inspire people to live by the teachings of Lord Buddha. He even engaged members of the royal family, including his son and daughter, Mahendra and Sanghamitra, to carry out duties of Buddhist missionaries. His missionaries went to the below mentioned places - Seleucid Empire (Middle Asia), Egypt, Macedonia, Cyrene (Libya), and Epirus (Greece and Albania). He also sent dignitaries all over his empire to propagate his ideals of Dhamma based on Buddhist philosophy. Some of these are listed as follows:
  • Kashmir - Gandhara Majjhantika
  • Mahisamandala (Mysore) - Mahadeva
  • Vanavasi (Tamil Nadu) - Rakkhita
  • Aparantaka (Gujarat and Sindh) - Yona Dhammarakkhita
  • Maharattha (Maharashtra) - Mahadhammarakkhita
  • "Country of the Yona" (Bactria/ Seleucid Empire) - Maharakkhita
  • Himavanta (Nepal) - Majjhima
  • Suvannabhumi (Thailand/ Myanmar) - Sona and Uttara
  • Lankadipa (Sri Lanka) - Mahamahinda
Demise
After ruling over the Indian subcontinent for a period of approximately 40 years, the Great Emperor Asoka left for the holy abode in 232 BC. After his death, his empire lasted just fifty more years.
Ashoka’s Legacy
Buddhist Emperor Asoka built thousands of Stupas and Viharas for Buddhist followers. One of his stupas, the Great Sanchi Stupa, has been declared as a World Heritage Site by UNECSO. The Ashoka Pillar at Sarnath has a four-lion capital, which was later adopted as the national emblem of the modern Indian republic.
Based on these 10 principles preached by Lord Buddha, Ashoka dictated the practice of Dharma that became the backbone of his philanthropic and tolerant administration. Dharma was neither a new religion nor a new political philosophy. It was a way of life, outlined in a code of conduct and a set of principles that he encouraged his subjects to adopt to lead a peaceful and prosperous life. He undertook the propagation of these philosophies through publication of 14 edicts that he spread out throughout his empire.

आदर्शवादी तथा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न, मानव सभ्यता का अग्रदूत तथा प्राचीन भारतीय इतिहास का दैदिप्त्यमान सितारा अशोक एक महान सम्राट था। सभी इतिहासकारों की दृष्टी से अशोक का शासनकाल स्वर्णिम काल कहलाता है।
अशोक बिंदुसार का पुत्र था , बौद्ध ग्रन्थ दीपवंश में बिन्दुसार की 16 पत्नियों एवं 101 पुत्रों का जिक्र है। अशोक की माता का नाम शुभदाग्री था। बिंदुसार ने अपने सभी पुत्रों को बेहतरीन शिक्षा देने की व्यवस्था की थी। लेकिन उन सबमें अशोक सबसे श्रेष्ठ और बुद्धिमान था। प्रशासनिक शिक्षा के लिये बिंदुसार ने अशोक को उज्जैन का सुबेदार नियुक्त किया था। अशोक बचपन से अत्यन्त मेघावी था। अशोक की गणना विश्व के महानतम् शासकों में की जाती है।

सुशीम बिंदुसार का सबसे बड़ा पुत्र था लेकिन बिंदुसार के शासनकाल में ही तक्षशीला में हुए विद्रोह को दबाने में वह अक्षम रहा। बिंदुसार ने अशोक को तक्षशीला भेजा। अशोक वहाँ शांति स्थापित करने में सफल रहा। अशोक अपने पिता के शासनकाल में ही प्रशासनिक कार्यों में सफल हो गया था। जब 273 ई.पू. में बिंदुसार बीमार हुआ तब अशोक उज्जैन का सुबेदार था।

पिता की बिमारी की खब़र सुनते ही वह पाटलीपुत्र के लिये रवाना हुआ लेकिन रास्ते में ही अशोक को पिता बिंदुसार के मृत्यु की ख़बर मिली। पाटलीपुत्र पहुँचकर उसे उन लोगों का सामना करना पड़ा जो उसे पसंद नही करते थे। युवराज न होने के कारण अशोक उत्तराधिकार से भी बहुत दूर था। लेकिन अशोक की योग्यता इस बात का संकेत करती थी कि अशोक ही बेहतर उत्तराधिकारी था। बहुत से लोग अशोक के पक्ष में भी थे। अतः उनकी मदद से एंव चार साल के कड़े संघर्ष के बाद 269 ई.पू. में अशोक का औपचारिक रूप से राज्यभिषेक हुआ।
अशोक ने प्रशाश्कीय क्षेत्र में जिस त्याग, दानशीलता तथा उदारता का परिचय दिया एवं मानव को नैतिक स्तर उठाने की प्रेरणा दी वो विश्व इतिहास में कहीं और देखने को नही मिलती है। अशोक ने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये अनेक सुधार किये और अनेक धर्म-महापात्रों की नियुक्ति की। अशोक अपनी जनता को अपनी संतान की तरह मानता था। उसने जनहित के लिये प्रांतीय राजुकों को नियुक्त किया। अशोक के छठे लेख से ये स्पष्ट हो जाता है कि वो कुशल प्रशासक था। उसका संदेश था –
प्रत्येक समय मैं चाहे भोजन कर रहा हूँ या शयनागार में हूँ, प्रतिवेदक प्रजा की स्थिति से मुझे अवगत करें। मैं सर्वत्र कार्य करूंगा प्रजा हित मेरा कर्तव्य है और इसका मूल उद्योग तथा कार्य तत्परता है।
अशोक की योग्यता का ही परिणाम था कि उसने 40 वर्षों तक कुशलता से शासन किया, यही वजह है कि सदियों बाद; आज भी लोग अशोक को एक अच्छे शाशक के रूप में याद करते हैं।
अशोक युद्ध के लिये इतना प्रसिद्ध नही हुआ जितना एक धम्म विजेता के रूप में प्रसिद्ध हुआ। वह न केवल मानव वरन सम्पूर्ण प्राणी जगत के प्रति उदारता का दृष्टीकोण रखता था। इसी कारण उसने पशु पक्षियों के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था। अशोक ने लोकहित के लिये छायादार वृक्ष, धर्मशालाएं बनवाई तथा कुएं भी खुदवाये। उसने मनुष्यों व पशुओं के लिये उपयोगी औषधियों एवं औषधालयों की व्यवस्था की थी।
अपने साम्राज्य की सीमाओं की सुरक्षा तथा दक्षिण भारत से व्यापार की इच्छा हेतु अशोक ने 261 ई.पू. में कलिंग पर आक्रमण किया। युद्ध बहुत भीषण हुआ। इस युद्ध में अशोक को विजय हासिल हुई। जिसका विवरण अशोक के तेरहवें शिलालेख में अंकित है। विजयी होने के बावजूद अशोक इस जीत से खुश नही हुआ क्योंकि इस युद्ध में नरसंहार का ऐसा तांडव हुआ जिसे देखकर अशोक का मन द्रविभूत हो गया।
युद्ध की भीषणता का दिलो-दिमाग पर ऐसा असर हुआ कि अशोक ने युद्ध की नीति का सदैव के लिये त्याग कर दिया। उसने दिग्विजय की जगह धम्म विजय को अपनाया। उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि कलिंग की जनता के साथ पुत्रवत् व्यवहार किया जाये तथा सभी के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो। उसने अपने आदेश को शिलालेख पर लिखवाया। ये आदेश धौली व जोगदा शिलालेखों पर अंकित है। कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक के व्यवहार में अद्भुत परिवर्तन हुआ और कलिंग युद्ध उसका अंतिम सैन्य अभियान था। अशोक की इस शान्ति प्रिय निती ने उसे अमर बना दिया।
अशोक ने अपने शासन काल में बंदियों की स्थिति में भी सुधार किये। उसने वर्ष में एक बार कैदियों को मुक्त करने की प्रथा का प्रारंभ किया था। अशोक ने राज्य का स्थाई रूप से दौरा करने के लिये व्युष्ट नामक अधिकारी नियुक्त किये थे। कलिंग विजय के पश्चात अशोक का साम्राज्य विस्तार बंगाल की खाड़ी तक हो गया था। नेपाल तथा कश्मीर भी मगध राज्य में थे। दक्षिण में पन्नार नदी तक साम्राज्य विस्तृत था। उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान व बलूचिस्तान भी अशोक के साम्राज्य का हिस्सा था।
अशोक ने धम्म सम्बन्धी अपने सिद्धान्त को अपने अभिलेखों में अभिव्यक्त किया है।
प्रथम शिलालेख मे लिखा है-
“यज्ञ अथवा भोजन के लिये पशुओं की हत्या न करना ही उचित है।”
इसी के साथ अशोक ने माता-पिता, गुरु एवं बड़े बुजुर्गों का आदर सत्कार का संदेश भी शिलालेख पर अंकित करवाया। अशोक के धम्म प्रचार का मुख्य उद्देश्य समाज में शांति और सोहार्द की वृद्धी करना था।
उसने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संधमित्रा को श्री लंका में बौद्ध प्रचार के लिये भेजा अशोक द्वारा लिखवाये गये अधिकांश शिला-अभिलेख धम्म प्रचार के साधन थे।
अशोक के अधिकांश संदेश ब्रह्मी लिपि में हैं। कुछ अभिलेखों में खरोष्ठी तथा आरमेइक लिपि का भी प्रयोग हुआ है। सर्व प्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने इसे पढने में सफलता हासिल की थी।
अशोक द्वारा लिखवाये अभिलेखों को चार भागों में विभाजित किया गया है, चौदह -शिलालेख, लघु-शिलालेख, स्तम्भ-शिलालेख तथा लघु-स्तम्भ शिलालेख। अशोक ने अपने शासनकाल में अनेक स्तंभ बनवाये थे उसमें से आज लगभग 19 ही प्राप्त हो सकें हैं। इनमें से हमारी संस्कृति की धरोहर अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अंगीकार किया गया है। स्तंभ में स्थित चार शेर शक्ति, शौर्य, गर्व और आत्वविश्वास के प्रतीक हैं। अशोक स्तंभ के ही निचले भाग में बना अशोक चक्र आज राष्ट्रीय ध्वज की शान बढ़ा रहा है।

अशोक में कर्तव्यनिष्ठा का प्रबल भाव था। उसने घोषणां की थी कि,
 मैं जो कुछ भी पराक्रम करता हूँ, वह उस ऋण को चुकाने के लिये है, जो सभी प्राणियों का मुझपर है।
सम्राट अशोक की मृत्यु की तिथी एवं कारण को लेकर अनेक भ्रान्तियां हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. में हुई थी।
इतिहासकार डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है कि, “राजाओं के इतिहास में अशोक की तुलना किसी अन्य राजा से नही कि जा सकती है।”
इतिहासकारों के अनुसार, अशोक चन्द्रगुप्त के समान प्रबल, समुन्द्र गुप्त के समान प्रतिभासम्पन्न तथा अकबर के समान निष्पक्ष था। चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा भारत को एक राजनैतिक सूत्र में बाँधने के प्रयत्न को अशोक ने पूर्ण किया था। निःसंदेह अशोक एक महान शासक था। उसका आदर्श विश्व की महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पूंजी है।
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सम्राट अशोक के बारे में कुछ रोचक तथ्य / Interesting Facts about Samrat Ashoka in Hindi

  • अशोक का पूरा नाम “अशोक वर्धन मौर्या” था। अशोक का अर्थ है – बिना शोक का यानि जिसे कोई दुःख न हो कोई पीड़ा न हो।
  • अशोक ने बाद में देवनंपिय पियदसी (Devanampiya Piyadasi) यानि “देवताओं का प्रिय और प्रेम से देखने वाला” की पदवी ले ली।
  • अपने भाइयों की हत्या, जिसमे सबसे बड़े भाई और बिन्दुसार के उत्तराधिकारी सुशीम की हत्या भी शामिल थी; के कारण अशोक का एक नाम चंड अशोक (Chanda Ashoka) भी पड़ा। जिसका अर्थ है बेरहम या निर्मम अशोक।
  • माना जाता है कि अशोक ने अपने सभी भाईयों की हत्या नहीं की और बहुत से भाइयों को जिसमे तिष्य नाम का एक छोटा भाई भी शामिल था, उन्हें मगध साम्राज्य के कई प्रान्तों का बागडोर सँभालने को दे दी।
  • 18 साल की उम्र में अशोक को उज्जैन के एक प्रान्त अवंती का वायसराय नियुक्त कर दिया गया था।
  • अशोक की पहली पत्नी देवी एक बौद्ध व्यापारी की पुत्री थी। जिससे अशोक को पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा प्राप्त हुए। देवी कभी भी राजधानी पाटलिपुत्र नहीं गयी।
  • महेद्र और संघमित्रा को श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तरदायी माना जाता है।
  • तक्षशिला का विद्रोह दबाने के बाद अशोक की अगला राजा बनने की सम्भावना बढ़ गयी, जिससे परेशान होकर बड़े भाई सुशीम ने राजा बिन्दुसार द्वारा उसे दो साल के देश निकाला दिला दिया।
  • इस दौरान अशोल एक मछुआरे की पुत्री करूणावकि से मिला और उससे विवाह कर लिया। इस विवाह से उसे तिवाला नाम का पुत्र हुआ। शिलालेखों में बस इसी रानी का नाम मिलता है।
  • अशोक की प्रधान रानी का नाम असंध्मित्रा था जो एक राज-परिवार से थी और अपना पूरा जीवन प्रमुख रानी बन कर रही। हालांकि, इस रानी से अशोक को कोई संतान नहीं थी।
  • चक्रवर्ती सम्राट अशोक का शासन 40 वर्ष का था, जबकि उसके पिता का शाशन 25 वर्ष का और मौर्य वंश के पहले सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का शाशन काल 24 वर्ष का था।
  • कलिंग के युद्ध में 1 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु ने अशोक को झकझोर दिया और तभी से वह शांति की तलाश में लग गया और धीरे-धीरे बौद्ध धर्म अपना लिया।
  • माना जाता है कि बौद्ध धर्म अपनाने से पहले अशोक भगवान् शिव का उपासक था।
  • अशोक का मानना था कि बौद्ध धर्म सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों और पेड़-पौधों के लिए भी हितकारी है और उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने धर्म प्रचारक श्रीलंका, नेपाल, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, यूनान तथा  मिस्र  तक भेजे।
  • अशोक का साम्राज्य पुरे भारतीय उप महाद्वीप में फैला हुआ था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था जो उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था।
  • अशोक के शासन काल में ही कई प्रमुख विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी, जिसमे तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय प्रमुख हैं।
  • तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप आज भी एक प्रसिद्द पर्यटक स्थल है।
  • अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य लगभग ५० और वर्षों तक चला। इसके आखिरी शासक का नाम ब्रह्द्रत था जिसे 185 BCE में उसके जनरल पुष्यमित्र संगा ने मार डाला था।
  • अशोक स्तम्भ से लिए गए अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में स्थान दिया गया है तथा चार शेरों वाले चिन्ह को राष्ट्रिय चिन्ह (national emblem) का सम्मान दिया गया है।

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